पाठकों के खत
पाठकों के पत्र
वह भी जमाना था जब लेखक की रचनाएं अखबारों में छपती थी और पाठक उन पर अपनी प्रतिक्रिया चिट्ठियों के द्वारा भेजते थे। आज जब कुछ कागज तलाश रहा था तो एक फाइल में ढे़र सी चिट्ठियां मिलीं। जिन्हें देखकर बीता जमाना याद आ गया ।तब पंजाब केसरी, वीर प्रताप अखबारों के प्रथम पृष्ठ नीले रंग में छपते थे ।हर दिन कोई न कोई विशेषांक होता था। किसी दिन कथा कहानी विशेषांक, रोमांच विशेषांक, खेल-खिलाड़ी आदि...। तब लिखता रहता था और दूर दूर से पाठक ,पाठिकायें अपनी अपनी प्रतिक्रिया भेजते थे। तब अखबारों के जिलावार संस्करण नहीं होते थे। मुजफ्फरनगर ,जिंद, दिल्ली ,रामपुर,अंबाला ना जाने कहां कहां से ख़त आते थे।लेखक को अच्छा लगता जब पाठक चिट्ठियों के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते ।कई पाठकों के साथ तो काफी अच्छे सम्बन्ध बन गए थे।आज भी चल रहे हैं।आजकल इंटरनेट का जमाना है ।फेसबुक पर कुछ ना कुछ लिखते रहते हैं। हमारे आदरणीय डिस्टिक लाइब्रेरी से रिटायर असिस्टेंट लाइब्रेरियन 80 वर्षीय प्यारेलाल कौशल जी का अक्सर सुबह फोन आ जाता है.... चंदेल जी आज आपने कुछ नहीं लिखा.... या फिर चंदेल जी वहां पर ऐसा भी था.... ऐसा भी था .....कई बातों की पुराने शहर की जानकारी उनसे मिल जाती है। पाठकों से जानकारी मिलना लेखक के लिए ज्ञानवर्धक भी होता है और उत्साहवर्धक भी ।फेसबुक पर आज आसानी से पाठक अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर देते हैं जो कभी चिट्ठियों के माध्यम से हम तक पहुंचती थी ।जमाना बदल गया है ।हम भी बदलने की कोशिश कर रहे हैं ।जितना आता है उतना लिख देते हैं।आगे आप जानो।
पुराने जमाने की यादें
ReplyDeleteसंभाल कर रखे तुम्हारे पत्र।स्म्रतियों का आईना है ये ख़त।
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