प्रजामंडल वालों की बिलासपुर में थी एक... ऊ पार्टी..

 कहलूर रियासत के अंतिम राजा आनंद चंद के खिलाफ वर्ष 1945 से प्रजामंडल के सदस्यों ने बगावती तेवर अपना लिए थे। गोविंद सागर झील में डूबे पुराने बिलासपुर शहर में प्रजामंडल के नेताओं ने अपने हमजोलियों के साथ एक टोला खड़ा कर लिया था जिसे.ऊ पार्टी .कहा जाता था। कई इसे ऊ डिपार्टमेंट भी कहते थे।इस ऊ पार्टी  या ऊ डिपार्टमेंट की कहीं कोई सदस्यता नहीं थी। कोई लिखित कार्यवाही नहीं होती थी ।लेकिन आपस में एक दूसरे को ऊपार्टी या ऊ डिपार्टमेंट के रूप में संबोधित करते थे ताकि कोई दूसरा राजा के कानों तक चुगली ना करदे। इस पार्टी में ज्यादातर लोग दौलत राम संख्यान के मित्र मंडली के थे।  वो अधिकतर रंगनाथ  मोहल्ला,  गोहर बाजार तथा  नाहरसिंह मंदिर के आसपास के रहने वाले थे । यह भी कमाल था कि पार्टी  के  इन सदस्यों का नाम पीछे से अधिकतर ऊ से समाप्त होता था। जैसे गिलडू, मस्तु , प्रीतू, रामू ,रिंडकू,  टांंटू, पूहमूू  हुआ करता था। दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी व पूर्व मंत्री दौलतराम सांंख्यान ने एक बार अनौपचारिक बातचीत में इस लेखक को बताया था कि उनका यह टोला बड़ा ताकतवर था ।एक सिटी बजाने पर सब इकट्ठे हो जाते थे। यह टोला समाज सेवा में अधिक सक्रिय रहता था। कहीं किसी की मृत्यु हो गई तो सबसे पहले वहां पहुंचा जाता था ।अंतिम समय का सारा क्रिया कर्म निपटा कर ही इस टोले के लोग घर आते थे। कोई बीमार पड़ गया.... कहीं शादी बयाह कारज है तो उस टोले के लोग वहां पर इकट्ठे होकर सारा काम करवाते थे। रंगनाथ मंदिर के मेलों में यह टोला समाज सेवा का काम संभालता था। मेले में कोई बच्चा गुम हो गया ।किसी को कोई जरूरत पड़ गई तो यह टोला सामने आता था। इस टोले के सदस्य श्मशान घाट पर बैठकर आपसी बातचीत में प्रजामंडल को सक्रिय करने की रणनीति बना लिया करते थे। उस समय हिमाचल प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ यशवंत सिंह परमार , पदम देव, हरिदास को बिलासपुर में आने की राजा की तरफ से पूरी मनाही थी। ये लोग बाहर बाहर से यहां के प्रजामंडल के लोगों से मिला करते थे। वर्ष 1947 में प्रजामंडल के इन सदस्यों ने रंगनाथ मंदिर के पास उस समय तिरंगा झंडा लहरा दिया था, जब राजा ने इसके लिए सख्त मनाही कर रखी थी।
 लेकिन ऊ पार्टी के ये सदस्य अपने काम में सफल होकर नौ दो ग्यारह हो गए थे। प्रजामंडल के यह सभी सदस्य सतलुज नदी में भी तैरा करते थे । ये जबरदस्त तैराक थे। सेवानिवृत्त सहायक लाइब्रेरियन प्यारेलाल कौशल के मुताबिक एक बार पुराने बिलासपुर शहर में 1.2.3 नाम से फिल्म की शूटिंग हुई थी। शूटिंग का दृश्य भंजवानी पुल से फिल्म के मुख्य किरदार द्वारा नदी में छलांग मारना दिखलाया जाना था। तब ऊ पार्टी के इन सदस्यों की सेवाएं ली गईंं  उन्होंने भंजवानी पुल से छलांग मारी और तैरते हुए आगे आए। तलवाड़ गांव के पास एक बहुत बड़ा पीपल का पेड़ था। जिसकी शाखाएं नदी तक पहुंचती थींं। वहां पर फिल्म का मुख्य किरदार अभिनेता उन नदी में से उन शाखाओं को पकड़कर ऊपर आया था। यानी फिल्म के डुप्लीकेट का काम ऊ पार्टी के इन सदस्यों ने किया था। आजादी के बाद दौलतराम संख्यान तथा कुछ और लोगों को स्वतंत्रता सेनानी की पेंशन तो लग गई लेकिन जिन लोगों ने प्रजा मंडल के नेताओं का भूमिगत रहकर साथ दिया था वो बेचारे अंतिम समय तक गरीबी  व उपेक्षा में ही भटकते रहे। कहा जाता है कि इनमें गिल्लडु नाम का शख्स तो रात को प्रजामंडल वालों की चिट्ठी डाक लेकर शिमला के लिए जाता था। और वहां से रात को ही चल कर वापस बिलासपुर आता था। लेकिन ऐसे लोगों की किसी ने कोई खैर खबर नहीं ली। तो यह थी बिलासपुर के प्रजामंडल वालों की गुप्त ऊ पार्टी जिसका जिक्र वो आपस में करते थे ।बहुत कम लोगों  को  इसका पता था।

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