बिलासपुर का हाथीथान और सांढु मैदान
कहलूर रियासत की राजधानी बिलासपुर में राजाओं के समय हाथी बांधने के लिए जो जगह थी उसे हाथी थान कहा जाता था। बाद में यहां पर राजा ने सिनेमा हॉल बनाया था। जहां हाथी थान था वहां पर लोहे के बड़े-बड़े गार्डरनुमा छल्ले जमीन में गड़े हुए थे । तब बताया जाता था कि यहां पर हाथी बांधे जाते थे। कहा जाता है कि राजाओं ने हाथी पालने के लिए मुस्लिम देशों से एक परिवार को विशेष रूप से बिलासपुर में बुलाया था । जो महावत का काम करते थे।
रियासत काल में जब युद्ध होते थे तो भी इन हाथियों का प्रयोग युद्ध के दौरान किया जाता था । राजा की अश्व शाला रंग महल के पास ही पिछली तरफ को थी। बिलासपुर का सांढु मैदान बहुत बड़ा मैदान था। इस मैदान की विशेषता थी कि यह बारह महीने हरा रहता था । शहर के पशु इस मैदान में चरते रहते थे। सांढु मैदान में एक समय में कई खेलें एक साथ खेली जा सकती थीं। रियासत काल में राजा आनंद चंद अखिल भारतीय नरेंद्र मंडल के सेक्रेटरी थे।
जिसे रूलरज़ काउंसिल ऑफ इंडिया भी कहा जाता था। उस समय महाराजा बड़ौदा तथा अन्य रियास्तों के जहाज सांढु मैदान में लैंड करते थे ।जिसमें वहां के राजा बिलासपुर के राजा आनंद चंद से सलाह मशवरा करने आते थे । सांढु मैदान में कहीं भी कोई भी पत्थर देखने को नहीं मिलता था । यह बहुत बड़ा मैदान था लेकिन कोई भी पत्थर यहां नहीं था । बाबा मस्तराम के देहरु के पास एक पत्थर जमीन में गड़ा हुआ था । वह बहुत गहरा था । कैसा था.... क्यों गड़ा हुआ था ...इसका पता नहीं चल पाया है। लेकिन स्कूल के बच्चे वहां जाकर उस पत्थर को हिलाने की, उखाड़ने की कोशिश करते थे । पर वह हिलता तक नहीं था । कोई उस पत्थर को शिवलिंग की तरह का पत्थर बताते थे।
राजा आनंद चंद ने ही सांडू मैदान के चारों तरफ सड़क का निर्माण करवाया था । इससे पहले वहां पर सड़क नहीं थी ।राजा ने ही लड़कियों के स्कूल के पास अस्पताल की नई आधुनिक इमारत बनवाई थी । उससे पहले अस्पताल जिसे दवाखाना शफाखाना भी कहा जाता था , वह वहां होता था जहां लड़कों का स्कूल था । सांढु मैदान में शहर के पशुओं को नहीं चरने देने के लिए एक बार राजा के कान कुछ चापलूस लोगों ने भर दिए कि पशु यहां पर गोबर करते हैं। और राजा ने लोगों को इस मैदान में पशु चराने को मना कर दिया। दुखी लोग उस समय के मशहूर संत बाबा बंगाली के पास गए जो कि लड़कों के स्कूल के बाहर एक कुटिया में रहते थे । सारी रियासत में उनकी लोकप्रियता थी । बाबा बंगाली को राजा के राज महल से सुबह और शाम राजा की रसोई से पका हुआ खाना आता था । लेकिन वह भिक्षा मांगकर ही भोजन करते थे। जो भोजन राजा की रसोई से आता था उसे वहां बैठे लोगों में बांट देते थे ।
हां ,तो ,जब लोग बाबा के पास अपनी फरियाद करने गए तो बाबा को बड़ा गुस्सा आया कि राजा ने गायोँ को सांढु में चरने से क्यों मना किया ?
वह राजा के पास गए । राजा ने बाबा की बात भी नहीं मानी ।
हां ,तो ,जब लोग बाबा के पास अपनी फरियाद करने गए तो बाबा को बड़ा गुस्सा आया कि राजा ने गायोँ को सांढु में चरने से क्यों मना किया ?
वह राजा के पास गए । राजा ने बाबा की बात भी नहीं मानी ।
बाबा ने कहा ....मैं तुम्हारी रियासत छोड़ कर चला जाऊंगा।
राजा ने कह दिया कि जाना है तो जाओ ।
और बाबा ने अपना डंडा करमंडल उठाया और निकल पडे़ बिलासपुर से बाहर को।
अब राजा को अपनी गलती का आभास हुआ। लेकिन बाबा तो वहां से निकल गए थे। बाबा गुस्से में रियासत छोड़ रहे थे। और वह चलते-चलते जगातखाने के ऊपर पहुंच गए थे। राजा ने सोचा अब बाबा नहीं आएगा ।बिलासपुर में त्राहि-त्राहि मच गई । आखिर राजा को एक युक्ति सूझी। उसने स्कूल के बच्चों से कहा कि आप जाओ ....बाबा को बुलाकर लाओ ...आपकी बात ही बाबा मान सकता है .....बाबा को कहना कि आप वापिस चलेंगे तब हम जाएंगे ....नहीं तो हम भी आपके साथ जाएंगे।
राजा ने कह दिया कि जाना है तो जाओ ।
और बाबा ने अपना डंडा करमंडल उठाया और निकल पडे़ बिलासपुर से बाहर को।
अब राजा को अपनी गलती का आभास हुआ। लेकिन बाबा तो वहां से निकल गए थे। बाबा गुस्से में रियासत छोड़ रहे थे। और वह चलते-चलते जगातखाने के ऊपर पहुंच गए थे। राजा ने सोचा अब बाबा नहीं आएगा ।बिलासपुर में त्राहि-त्राहि मच गई । आखिर राजा को एक युक्ति सूझी। उसने स्कूल के बच्चों से कहा कि आप जाओ ....बाबा को बुलाकर लाओ ...आपकी बात ही बाबा मान सकता है .....बाबा को कहना कि आप वापिस चलेंगे तब हम जाएंगे ....नहीं तो हम भी आपके साथ जाएंगे।
लड़कों ने वैसा ही किया और बाबा को जगात खाना के ऊपर चढा़ई चढ़ते चढ़ते हुए घेर लिया ।
बाबा ..बाबा ..रुको ..रुको ..अरे बाबा ..आपको लेने आए हैं।
नहीं, मैं नहीं जाऊंगा ।
नहीं बाबा ,चलो आप ।आप नहीं जाएंगे तो हम भी नहीं जाएंगे ।
आखिर बाबा को बाल हट के आगे झुकना पड़ा और बाबा बच्चों को साथ लेकर वापिस अपनी कुटिया में आ गए । बाबा के आने पर शहर में खुशियां मनाई गईं और राजा ने भी बाबा से माफी मांगी कि आगे से ऐसा नहीं करेंगे । इसी मैदान में गउयें चरेंगी। सांढु मैदान बिलासपुर के जनजीवन से पूरी तरह से जुड़ा हुआ था।
सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी शक्ति सिंह चंदेल ने बिलासपुर के इतिहास को अपनी कलम से अपनी किताब कहलूर बिलासपुर थरु दा सेंचरिज में बहुत ही सराहनीय ढंग से संजोया है। कलम वध किया है । यह पुस्तक बिलासपुर के इतिहास पर खोज करने वालों के लिए एक बहुत ही उपयोगी पुस्तक सिद्ध हो रही है । चंदेल जी अंग्रेजी में पोर्ट्रेट ऑफ इंडिया मैगजीन भी प्रकाशित करते हैं जोकि त्रैमासिक है । इसमें भी कभी ना कभी वह बिलासपुर के बारे कोई ना कोई लेख जरूर प्रकाशित करते हैं। यहां अपनी पोस्ट में जो फोटो मैंने दिए हैं वह चंदेल जी की ही पुस्तक से लिए गए हैं।
अच्छा लगा
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