Posts

Showing posts from May, 2020

कहलूर रियासत के अंतिम राजा आनंद चंद का 1946 का भाषण...

Image
 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ था। उससे एक साल पहले यानी वर्ष 1946 में कहलूर रियासत के  अंतिम राजा आनंद चंद के मन में क्या चल रहा था...... इसका पता लगाते हैं ...राजा के उस भाषण से जो राजा ने विक्रमी संवत 2003 को बजट पेश करते हुए दिया था। लगभग 74  साल पहले दिये गए इस भाषण को दिल्ली प्रेस ,नई दिल्ली से एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित कराया गया था। 26 पृष्ठों की इस पुस्तक में बिलासपुर राज्य के सूचना विभाग के उप मंत्री भूमिका में लिखते हैंं.... आज जबकि भारत एक स्वाधीन देश बनने जा रहा है, यह अत्यावश्यक प्रतीत होता है कि उस में स्थित देशी राज्यों के प्रश्न का वाहया जनता को पूरा परिचय मिले। हमारे श्रीमन्हाराज ने अपने संवत 2003 के बजट दरबार के भाषण में इस समस्या पर बहुत प्रकाश डाला है और कहलूर की वर्तमान स्थिति को प्रक्ट करते हुए भविष्य में एक स्वाधीन भारत के अंदर देसी राज्यों के उपयुक्त स्थान को खोज निकालने का प्रयत्न किया है ।उनके इसी भाषण को हम पाठकों के सम्मुख रखते हुए आशा करते हैं कि वे इससे उचित लाभ उठाएंगे ।।              ...

पाठकों के खत

Image
पाठकों के पत्र  वह भी जमाना था जब लेखक की रचनाएं अखबारों में छपती थी और पाठक उन पर अपनी प्रतिक्रिया चिट्ठियों के द्वारा भेजते थे। आज जब कुछ कागज तलाश रहा था तो एक फाइल में ढे़र सी चिट्ठियां मिलीं। जिन्हें देखकर बीता जमाना याद आ गया ।तब पंजाब केसरी, वीर प्रताप अखबारों के प्रथम पृष्ठ नीले रंग में छपते थे ।हर दिन कोई न कोई विशेषांक होता था। किसी दिन कथा कहानी विशेषांक, रोमांच विशेषांक, खेल-खिलाड़ी आदि...। तब लिखता रहता था और दूर दूर से पाठक  ,पाठिकायें  अपनी अपनी प्रतिक्रिया भेजते थे। तब अखबारों के जिलावार संस्करण नहीं होते थे। मुजफ्फरनगर ,जिंद, दिल्ली ,रामपुर,अंबाला ना जाने कहां कहां से  ख़त आते  थे।लेखक को अच्छा लगता जब पाठक चिट्ठियों के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते ।कई  पाठकों के साथ तो काफी अच्छे सम्बन्ध बन गए थे।आज भी चल रहे हैं।आजकल इंटरनेट का जमाना है ।फेसबुक पर कुछ ना कुछ लिखते रहते हैं। हमारे आदरणीय  डिस्टिक लाइब्रेरी से रिटायर असिस्टेंट लाइब्रेरियन 80 वर्षीय प्यारेलाल कौशल जी का अक्सर सुबह फोन आ जाता है.... चंदेल जी आज आपने कुछ नहीं लिख...

कविता - कोई मुझ से पूछे

Image
कोई मुझ से पूछे नालयां का नौण ,किरपु का घराट तबत्तन का बाजार, बाजार में नवाज लगाता था आवाज.. हर माल दो आने हर माल दो आने.दो आने झील में डूबे मेरे शहर की पहचान कोई मुझ से पूछे..कोई मुझ से पूछे सतलुज में अलीखड्ड का मिलना लगता था मां बेटी का हो रहा मिलना चंपावती का संगम और पांच पीपलू श्मशान घाट का वह बूढा़ सा साधु झील में डूबे मेरे शहर की पहचान कोई मुझसे पूछे, कोई मुझसे पूछे मोहन की फांसी का राज़ बेड़ीघाट की रौनक, आती है याद गोहर बाजार खाखी शाह की महफिलें खड़यालू में मंजलसी की दुकान धनिए की भूनी मछली की खुशबू लक्खु के पड्डू का मांस और बाघल की झिंझन के भात का स्वाद झील में डूबे मेरे शहर की पहचान कोई मुझसे पूछे, कोई मुझसे पूछे लेहरू का चना चबीना और रंगनाथ के पास लूंदा बच्चों को देना झील में डूबे मेरे शहर की पहचान कोई मुझसे पूछे, कोई मुझसे पूछे हनुमान की बड़ सांढू का मैदान नलवाड़ी के मेले में बैलों की शान राजा के महल गोपाल जी का मंदिर मस्त बाबा का धूना चबडियां का बाग सोहडों के कुएं के शीतल जल का स्वाद कोई मुझसे...

बिलासपुर का हाथीथान और सांढु मैदान

Image
कहलूर रियासत की राजधानी बिलासपुर में राजाओं के समय हाथी बांधने के लिए जो जगह थी उसे हाथी थान कहा जाता था। बाद में यहां पर राजा ने सिनेमा हॉल बनाया था। जहां हाथी थान था वहां पर लोहे के बड़े-बड़े गार्डरनुमा छल्ले जमीन में गड़े हुए थे । तब बताया जाता था कि यहां पर हाथी बांधे जाते थे। कहा जाता है कि राजाओं ने हाथी पालने के लिए मुस्लिम देशों से एक परिवार को विशेष रूप से बिलासपुर में बुलाया था । जो महावत का काम करते थे। रियासत काल में जब युद्ध होते थे तो भी इन हाथियों का प्रयोग युद्ध के दौरान किया जाता था । राजा की अश्व शाला रंग महल के पास ही पिछली तरफ को थी। बिलासपुर का सांढु मैदान बहुत बड़ा मैदान था। इस मैदान की विशेषता थी कि यह बारह महीने हरा रहता था । शहर के पशु इस मैदान में चरते रहते थे। सांढु मैदान में एक समय में कई खेलें एक साथ खेली जा सकती थीं। रियासत काल में राजा आनंद चंद अखिल भारतीय नरेंद्र मंडल के सेक्रेटरी थे। जिसे रूलरज़ काउंसिल ऑफ इंडिया भी कहा जाता था। उस समय महाराजा बड़ौदा तथा अन्य रियास्तों के जहाज सांढु मैदान में लैंड करते थे ।जिसमें वहां के राजा बिलासपुर क...